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ध्यानकल्पतरू. हैं सोही दृष्टी आता हैं; तो भी उसका प्रतिपक्षी गुप्त वनाही रहता हैं.
जिनके पुण्यकी अधिकता होतीहै, उनको सुख दाइ मनयोग, सामग्रीयोंका संयोग मिलता है;वों उसका वियोग कदापी नहीं चहातें है. (यह वर्णव आर्त ध्यानके दूसरे भेदमें हो गया है) परंतु वस्तुका खभावही “अध्रुव असा सयंमी” अर्थात् अध्रुव, अशाश्वतः क्षिण-भांगूर हैं. “समय ३ अनंत हानी" भगवंतने फरमाइ, सो सत्य हैं. वस्तुका स्वभाव क्षिण २में पलटता २, किसी वक्त वो सर्व वस्तु नष्ट होजाती हैं; उसे नष्ट न होने देने-अर्थात् बचानेके जो उपाय कियाजाय, उसीका नाम विषय संरक्षण रौद्रध्यान हैं.
राज लक्ष्मी प्राप्त होनेसे, विचार होयकी रखे मेरे राज्यको, कोइ परचक्रीयादी हरण करे. इस लिये अव्वलही बंदोबस्त करे, चतुरगणी शैन्य (हाथी, घोडे, रथ, पायदल) उमदा २ प्राक्रमीयोंका संग्रह करूं, धोकेके स्थान छावणी डालू, उद्धतोके संहारका उपाय चिंतवे, शाके राजमें मनुष्य रख खबर लेता रहूं. उमरावादी को इनाम इकरामसे संतुष्ठ रखू की वक्त में जान झोंकदे. पुक्त, पुस्ती, उंडी,खाई,शत्पनीयादी