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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान. की भोगवणे की अभीलाषा होवे, वोही तस्करानुबन्ध तीसरा रौद्रध्यान.
- चोर चोरी करके वस्तु लाया, उसको सस्ते भावमें लेके मजा माने, चोर को साहाय देवे. खान पान वस्त्रादी से साता उपजा, उनके पास चोरी करावे, और माल आप लेके आनंद माने, राजका दाण (हांसल) चोरा के खुशी होवे, जिस वस्तु बेंचनें की, अपनें राज में राजाने मनाकी होय, उसे गुप्त लाके बेंचे, और खुश होवे, इत्यादी तस्करानुबन्ध रौद्रध्यान के, अनेक भेद है.सबका मतलब इनाही है के मालककी रजा(आज्ञा) विन, या उसके मन बिन, जब्बर दस्तीकर जो वस्तू पे अपनी मालकी जमाके आनंद माने; सोही तस्करानुबन्ध रौद्रध्यान.
चतुर्थ पत्र “संरक्षण” ... .. ४ “विषय संरक्षण रौद्रध्यान-इस् जगत्में सब जीव पापीही पापी है, ऐसाभी नही. समजनाः तथा सब पुन्यात्मा हैं, ऐसा भी नही समजना. सर्व संसारी जीवोंके पुण्य ओर पाप दोनों आनादी से लगे हैं. पापकी वृधी होनेसे, दुःख की विशेषता, और पुण्यकी. वृधी होनेसे, सुखकी विशेषता होती हैं; ज्यादा होता