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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान. . ३७ रौद्रध्यान.
ऐसेही किनेक नामधारी साहुकार, लोकोकों सेठाइ बताने, उत्तम २ वस्त्र, भूषण, तिलक-छापे, माला, कंठी, से शरीर विभुषित कर, माला फिराते, बड़े धर्मात्मा बन, ऊंची २ गादी तकीयोंके टेके, दुकान पे विराजमान होते हैं. शीकार आइ के माला हलाते, भगवानका नाम उच्चार ते, मीठे २ बोल. उस भोलेकों, पान बीडी आंदी के लालच से भरमा के, ऐसी हुस्यारी से ठगाइ चलाते हैं, की क्या मगदूर कोइ समझतो जाय, मोलमें, बोलमें, तोलमें, मापमें, छापमें, जवावमें ठगाइ चला, वस पहोंचे वहां तक उसे लूटनेमें कसर नहीं रखते हैं. और विश्वास उपजानें गायकी, बच्चेकी तथा भगवानकी, दमडी २ के वास्ते कसम (सोगन) खाजाते हैं, इच्छित लाभ हुये बड़े खुशी होते हैं. अच्छा माल बता खोटा देते हैं, अच्छा बुरा भेला कर देते हैं, हिसाबमें, व्याजमें, उनका घर डुबो देते हैं. ऐसे २ अनेक चोरी कर्म भर बजार में कर साहुकार कहलातें हैं. अपनें चालाकीको हुस्यारी समज बडा हर्ष मानते हैं, सोभी चोरीयानुबन्ध रौद्रध्यान.