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ध्यानकल्पतरू.
बधीर (बैरे) अन्धे, लंगडे, आदी अपंगको; कुष्टादी रोगिको, निर्बंधी, इत्यादिकी हांसी करे, इन्हे चिडावे, चिडते देख मजा माने. जुवा तास (पत्ते). शतरंज, वगैरे ख्यालोंमें, सहजही झट बोलाता हैं. निकम्में विवादमें, प्रवादीयोंको दगासे छलनेमें, झूटे पेंच रचने में, हस्त चालाकीसे,या इन्द्रजालसें, अनेक कौतुक बतानेमें, मंत्र जंत्रादीका आडंबर बडा, आपनी प्रतिष्टा (महिमा)सुण खुश होवे. शास्त्रार्थ करते (वाख्यान देते) अपने मरम (हर्ज) की बातकों छिपावे, अर्थको फिरावें, अनर्थ करे. झूटे गप्पेसें प्रपदाकों रीजाके, आनंद माने. दया, सत्य, सीलादी गुण रहित शास्त्र हैं, जिनमें फक्त संग्राम झगडे,या लीला, कि तुहल, की कथा होवें, उन्हे श्रवण कर आनंद माने. इत्यादि सर्व मृषानुबन्ध रौद्रध्यान समजना.
मृषानुबन्धका अर्थ तो बहुतही होता हैं; परंतु सागंस इनाही है की झूटे काममे अनंद माने उसहीका नाम मृषानुबन्ध रौद्रध्यान जाणता.
- सो रंज करनेवाली.