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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान. भरममें डाले, हिंशामार्ग बता; शुद्ध दया मार्ग छोडा, मनमें आनंद माने, की- मेंने इत्ने ग्राम, इत्ने मनुष्य, मेरे बनाये. ऐसेही, ज्ञानवंत, आचारवंत, शुद्व जिनेश्वरके मार्गके परुपक, क्षमासील, ब्रम्हचारी वगैरे धर्म दीपकोंकी, महीमां सुणके इर्षा लावे; और उनका अपमान करनें, उनके सिर झूटा कलंक चडावे, निंदाकरे; और अपनी झूटी बातको दूसरे मान्य करते देख हर्ष मानें. कन्यादान, ऋतुदान, ठेहराके कुलीन स्त्रीयोंको भृष्ट करे. धर्म निमित हिंशामें दोष नहीं ऐसा ठहरावे. ब्रम्हचारी नाम धरा, बिभचार सेवन करे, और महातमा वगैरे नामसे बोलाते आनंद माने, सो भी मृषानुबन्ध रौद्रध्यान.
मनहरः-सजनको देखकर दुर्जन करत कोप, ब्रम्हचारी देखकामी कोप करे मनमें. निशके जगैया ताको देख कोप करे चोर, धर्मवंत देख पापी झाल उठे तनमें; सुरवीर देखकर, कायरकरत कोप; कवीयोंको देख मुढ हांसी करे जनमें. धनके धनीकों देख निर्धन कोप करे, विनाही निमित खाक डारेतिहूं पनमें: