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ध्यानकल्पतरू.
र्मोमेंही आनंद (मजा) मानते हैं. उन कूकर्मोके आनंदसें, जो अंतःकरणमें विचार होता है, उसे तत्वज्ञ पुरुषोंने रौद्र-भयानक ध्यान फरमाया हैं. इसके मुख्य चार प्रकार करे हैं.
प्रथम पत्र-“ हिंशानुबंध.” १ "हिंशानुबंध रौद्र ध्यान” सोसंछेदनैर्दमनै ताड़न तापनैश्च, बन्ध प्रहार दमनैश्च विकृन्तनैश्व; यस्येह राग मुपयाति नचानु कम्पा, ध्यानंतु रौद्र भिती तत्प्रवदन्ति तज्ञः,
सागर धर्मामृत.
अस्यार्थम्-छेदन, भेदन, ताडन, तापन,करना. बन्धन बांधना, प्रहार मारना, दमन करना कूरूप करना, इत्यादि कर्मों में जिसका अनुराग (प्रेम) होवे, और यह कर्म देख जिसकों दया नहीं आवे, सो हिंशानुबन्धी रौद्र ध्यान. .
(१) 'दुःख किसकों भी प्रिय नहीं हैं' बेचारे जीव कर्माधिनतासे, पराधीनता, निराधारता, अ