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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान.
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. द्वितीय शाखा "रौद्रध्यान"
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रोहे झाणे चविह पन्नंते तज्जहा, हिंसाणुबंधी, मोसाणुबंधी, तेणाणुबंधी, सार
ख्खणाणुबंधी... .. अस्यार्थ-रौद्र (भयंकर) ध्यानके चार प्रकार भगवंतने फरमाये, सो कहता हूं. १ हिशानुबंध-हिशक कर्मोंका अनुमोदन (परसंस्था) करे, २ मृषानुबंध-मिथ्या(झूटे)कर्मोका अनुमोदन करे.३ तस्करानुबंध-चोरीके कर्मोंका अनुमोदन करे.४ संरक्षणानुबंध-सुख रक्षणके कामोंका अनुमोदन करे.
प्रथम प्रतिशाखा “रोद्रध्यानके भेद."
जैसे मदिरा पान करनेसे, मनुष्यकी बुद्धि विकल होजाती हैं, और वो विशेषत्व. क्रुर कर्मोमेंही आनंद मानता है, तैसेही जीव अनादी कालसे, कर्म रूप मदिराके नशेमें, मतबाले हुये हुवे. कूक