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ध्यानकल्पतरू.
कालसे लगा है, यह विना संस्कार स्वभाव सेही उत्पन्न होता है. इस ध्यानमें मरणेवालेकी विशेष कर तिर्यंच गतीही होती है. यह ध्यान 'हेय' अर्थात छोडने योग्य है. परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके बाल ब्रह्मचारी मुनी श्री अमोलख ऋषिजी रचित ध्यानकल्पतरू ग्रन्थ की प्रथमशाखा आर्तध्यान नामे
समाप्त.