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________________ प्रथमशाखा-आर्तध्यान. श्वयात्मक वांछा) करे, की मेरी करणी के फलसे मुजे राज्य और इन्द्रादिक के वैभव (सुख) की प्राप्ती होवो,(४)और अपणी करणीके प्रभावसे आशीर्वाद दे, अन्य स्वजन मित्रादि कों, धनेश्वरी सुखी करनेकी अभीलाषा करे,(५)और अपने वजन मित्र या पडोसी को सुखी देख, आपके मनमें झूरणा करे, की सबके बीच मेंही एक दरिद्री कैसे रहगया! वगैरे. इत्यादी विचार अंतःकरण में प्रवृते सो आर्त ध्यानका चौथा प्रकार जाणना. द्वितीय प्रतिशाखा.'आर्तध्यानके लक्षण.' - -0000--- सुत्र अट्ट स्सणं झाणस्स, चत्तारि लख्खणा, पन्नंता तंज्जहा, कंदणया, सोयणया, तिप्पणया, विलवणया. उइवाइ सूत्र. अस्यार्थः-"आर्त-व्यानीके चार लक्षण” सो 'दशा पत्स्कंध सुत्र में, नियाणे दो प्रकारके फरमाये हैं१ भवप्रतेक सो, संपूर्ण भवतक चले एसा निदान करे, जैसे नारायण, वासुदेव पदके नियाणसे होतहैं, उनकों वत प्रत्या
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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