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प्रथमशाखा-आर्तध्यान.
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प्रथम प्रतिशाखा 'आर्त ध्यानके भेद'
सूत्र अढे झाणे चउ विह, पण्णंते, तंज्जहा,
र अमणुग संप उग संपउत्ते, तस्स विप्प उगसति, समणा एगययावी भवात्त. मणुण संपउत्ते, तस्स अवीप्प उग सति समणा गएया अभवत्ति, आयक संप उग संपउत्ते. तस्सविप्पउंग सत्ती समणे गएया वीभवत्ति. परिझुसीया काम भोग संपउत्ते, तस्सअविप्पउग सत्ति, समणे एगया भवात्त.
उववाइ सूत्र. अर्थ-आर्त ध्यान चार प्रकारसे, भगवंतने फरमाया, सो कहतेहैं. १ अमन्योंग (खराब) शब्दादिक का संयोग होनेसे, विचार होवे की- इनका वियोग (नाश) कब होगा; इसकों अनिष्ट संयोग नामें आर्त ध्यान कहना. २ मन्योग (अच्छे) शब्दादिकका, संयोग (प्राप्ती) होनेसें, विचार होवें की- इनका वियोग कदापी न होवो; इसे इष्ट संयोग आर्त ध्यान कहना. ३ ज्वर, कुष्टादि अनेक प्रकारके रोगोंकी प्राप्ती होनेते, विचार होवे कीइनका शिघ्र नाश होवो. इसे रोगोदय आर्तध्यान कहना. ४ इच्छित काम भोग की प्राप्ती होनेसे