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________________ ∞ ध्यानकल्पतरू. या शुद्ध विचारको शुभ या शुद्ध ध्यान कहतें हैं. उपर कहे सूत्र में अशुभ ध्यानके दो भेद किये हैं, आर्त ध्यान और रुद्र ध्यान. तैसे शुभ ध्यानकेभी दो भेद किये हैं- धर्म ध्यान, और सुक्ल ध्यान. इन चाहीका सविस्तर वर्णव, आगे अलग २ शाखाओंमें किया जायगा. 66 अशुभ ध्यान. उपर कहै चार ध्यानोंमेंसे, अव्वल अशुभध्यानका वर्ण करता हूं, क्योंकि मोक्षार्थी, अशुभ ध्यान का स्वरुप समजेंगे, तो उससे बचके, शुभमें प्रवेश करनेको प्रयत्न वंत हो सकेंगे. 55 प्रथम शाखा "आर्तध्यान" इस जगत निवासी, सकर्मी जीवोंकों, शुभाशुभ कर्मोंके संयोगले, इष्ट ( अच्छे ) का संयोग ( मिलाप ), और अनिष्ट (बुरे) का वियोग (नाश ) तथा अनिष्टका संयोग, और इष्टका वियोग, अनादिसे होताही आया हैं; उसमें जो मनमें सकल्प विकल्प उत्पन्न होता हैं; उसेही 'आर्त ध्यान' समजना. जिनेश्वर भगवाननें, जिसके मुख्य चार प्रकार कहे हैं.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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