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ध्यानकल्पतरू.
या शुद्ध विचारको शुभ या शुद्ध ध्यान कहतें हैं. उपर कहे सूत्र में अशुभ ध्यानके दो भेद किये हैं, आर्त ध्यान और रुद्र ध्यान. तैसे शुभ ध्यानकेभी दो भेद किये हैं- धर्म ध्यान, और सुक्ल ध्यान. इन चाहीका सविस्तर वर्णव, आगे अलग २ शाखाओंमें किया जायगा.
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अशुभ ध्यान.
उपर कहै चार ध्यानोंमेंसे, अव्वल अशुभध्यानका वर्ण करता हूं, क्योंकि मोक्षार्थी, अशुभ ध्यान का स्वरुप समजेंगे, तो उससे बचके, शुभमें प्रवेश करनेको प्रयत्न वंत हो सकेंगे.
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प्रथम शाखा "आर्तध्यान"
इस जगत निवासी, सकर्मी जीवोंकों, शुभाशुभ कर्मोंके संयोगले, इष्ट ( अच्छे ) का संयोग ( मिलाप ), और अनिष्ट (बुरे) का वियोग (नाश ) तथा अनिष्टका संयोग, और इष्टका वियोग, अनादिसे होताही आया हैं; उसमें जो मनमें सकल्प विकल्प उत्पन्न होता हैं; उसेही 'आर्त ध्यान' समजना. जिनेश्वर भगवाननें, जिसके मुख्य चार प्रकार कहे हैं.