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________________ ध्यानकल्पतरू. स्कन्ध. ध्यान शब्दकी धातू "ध्ये” हैं, ध्यैका अर्थअंतःकरणमें विचार करना- सोचना ऐसा होताहै. ध्यानके भेद शास्त्रमें इस प्रकार किये हैं. शाखा. सूत्र से कितं झाणे, झाणे चउविहे पन्नते तंज्जहा,अट्टे झाणे, रुद्दे ज्ञाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे. उववाह सूत्र. अर्थ-शिष्य सविनय प्रश्न करता है, कीगुरु महाराज, ध्यानके भेद किने हैं ? गुरु-है शिष्य, ध्यानके चार भेद भगवंतने फरमाये हैं, वैसेही में तेरेसे अनुक्रमें कहताहूं. १ आर्त ध्यान, २ रुद्र ध्यान, ३ धर्म ध्यान; और. ४ सुक्ल ध्यान. अंतःकरणमें विचार दो तरहका होता हैं. १ कभी अशुभ अर्थात् बुरा. और कभी शुभ अर्थात् अच्छा. अशुभ विचारकों अशुभ ध्यान, और शुभ
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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