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ध्यानकल्पतरू.
में श्रेष्ट, ऐसा सुक्कभ्यान ध्याया. उस ध्यानके प्रशा दसे; महा ऋषिस्वर, समस्त कर्मोका नाश-क्षय कर निर्मळे हुये, जिससे अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य, यह अनंत चतुष्टयकों प्राप्त कर; जो आदि सहित और अंतरहित, ऐसी सिद्ध गती, मोक्षगती, लोकके उपर, अग्रभागमें हैं; उसको प्रप्त करी. ऐसे श्रीमहावीर वृधमान स्वामी जीकों मेरा त्रिकर्ण विशुद्ध त्रिकाल नमस्कार होवो!
भूमिका. SATTA ध्याताध्यानं तथा ध्येयं, फलं चेति चतुष्टयम. श्लोक
इति सूत्र समा सेन, सविकल्पं निग्रह्यते.
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अर्थ-ध्याता कहीये ध्यान करनेवाले. ध्यान कहीये ध्यान अवस्था धारण कर स्थिर बेठना, ध्येय कहीये किसी प्रकारका मनमें विचार करना; और फलं कहीये, उस विचारका उस (ध्याता) को क्या फल मिलेगा; इन चारोंही बाबतोंका, यथा बुद्धि इस ग्रंथमें दर्शानेका पर्यन्त करूंगा. उसे पाठक गणों, दत्त चितसे पढके. अशुभसेंबच, शुभमें प्रवेशकर, इष्टार्थ सिद्ध करने स्मर्थ बनेंगे.