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________________ PRRORS805892MMON CANDIDOXIDESI SAROTERRAO श्री जिनवरेंद्राय नमः ध्यानकल्पतरु मङ्गलाचरणम्. FFERER अणुतरं धम्म-मुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइं; सु सुक्क सुकं अपगंड सुक्कं, संखिंदु वेगं तव दान मुक्कं ॥१॥ अणुत्तरंग्गं परमं महेसी, असेस कम्मं स विसोह इत्ता सिद्धि गइ साइ मणेत पत्ते, नणेण सीलण य दंसणेणं ॥२॥ सुयगडांगसूत्र श्रमण भगवंत श्री महावीर वृधमान स्वामी, प्रधान-श्रेष्ट धर्मके प्रकाशक, सर्वोत्तम उज्वलसे अती उज्वल, दोष-मल रहित, ध्यान को ध्याया. कैसा उज्वल ध्यान ध्याया, तो के यथा द्रष्टांत-जैसा अर्जुन सुवर्ण उज्वल होता है, पाणी के फेण उ- ज्वल होते हैं, संख और चंद्रमाके कीर्ण उज्वल होतें हैं. ऐसा बल्के इससे भी अधिक उज्वल. सर्व ध्यानो
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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