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तृतीयशाखा-धर्मध्यान २६१ अन्यगति करते देवगति में सुखकी अधिकता है. सब वैक्रय सरीर धारी है. दिल चाहे जैसा, और दिलचाह जिले रूप बना सक्ते है. निरोगी, महा दि व्य सदा तरुण, सरीर होता है. आयुष्य जघन्य (थोडासे थोडा) दश हजार, वर्षका, और उत्कृष्ट ३३ सा गरोपम का सेंकडो हजारो वर्षमें क्षुद्या लगी के तुर्त सर्व दिशामेंसे शुभ पूद्गलोंका अहार, रोम २ से ग्रहण कर त्रप्त हो जाते है. इनके विषय सुख अन्योपम सेंकडों हजारों वर्षके होते हैं. इनके सामान्य नाटक में दो हजार वर्ष, और बड़े नाटक में १० हजार बर्ष वितिकृत हो जाते है. उनके वहां रात्री नहीं है. सदा महा प्रकाश बना रहता है.
इत्यादिक सुखके देव भुक्ता है तो भी दुःखी है, क्योकि, क्षुद्या वेदनी तो लगी ही हैं. और सब देवता बरोबर एकसे नहीं है, कित्नेक इन्द्र हैं. कित्ने क तायनिक (इन्द्रके गुरुस्थानी) है. कित्नेक सामानिक [इन्द्रके बरोबरीके के] है. कित्नेक आत्म रक्षक. (प्रहरादार) हैं, किनेक प्रषादके देव है. कित्नेक अणिका (शैन्य) के देव है. गंधर्व (गायन करने वाले) देव, नाटकिये (नाचने वाले) देव, अभोगी (नोकर) देव, और प्रकीर्ण (अनेक विमान वासी) देव. ऐसे