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________________ २६० ध्यानकल्पतरू. ज झमक, अभी पत्त झमक, यह १० झमक मिल २६ भेद बाण व्यंतरकी जातीमें गिने जातें है. यह पहले नर्क के उपर पृथवी के नीचे रहते हैं. चंद्र, सूर्य, ग्रह नक्षेत्र, तारा, यह.५ अढाइद्विपके अंदर चलते फिरते हैं, और इन्ही नामके ५ अढाइ द्विपके बाहिर स्थिर है. यह १० जोतषी गिने जाते हैं. १ तीन पलिये, २ तीन सागरीय ३ और तेर सागरीये, यह तीन किलमुखी नीच जातके देव हैं. १ सुधर्मा, ६ईशान, सनत कुमार, महेंद्र, ब्रम्ह, लांतक, महाशुक्र, आण, प्रण, अरण, अ. चुत यह १२ देवलोक, साइच, माइच, वरुण, वन्ही, गदतोय तुसीय, अरिठा, अगिच्छा अववाह, यह ९ लोकांतिक उच्च देव है. भद्दे सुभद्दे, सुजाय, सुमाण. से, सुदंसण, पियदंशण, आमोय, सुपडिभद्दे, जसोधर, यह ९ ग्रीवेग हैं. विजय, विजयंत जयंत. अपरजित और सवार्थ सिद्ध यह ५ अनुत्रविमान है. २५+२६+१०+ ३+१२+९+९+५ =९९ हये. इन के अप्रयाप्ता और प्रयाप्ता यह १९८ देवता के भेद हुये. * तीन पल्येकील मुखी देव, जातषी के उपा रहते हैं. तीन सागरीय, दूसर देालोक के उार तीसरेके नीचे होते हैं. तरे सागाये छट देवलोकके पास रहते है. यह विद्रुप और हीन स्थितीवाले हैं. चार तीर्थ का निंदक धर्म ठग निन्हवे इनमें अवतार लेता है.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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