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ध्यानकल्पतरू.
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जहेह सिंहो व मियं गहाय, मच्चु नरं नेइहू अंत कालेन तस्स माया व पियाव भाया,कालंमि तस्स सहग भवंति११
उत्तरा• १३ _ अर्थात्-जैसे बनमें फिरते हुये मृग (हिरण) के जुन्थ मे सें. सिंह (शेहर) एक मृग को पकड के ले जाता है, तब सब हिरणे थर्र २ कांपते, अपनी २ जान बचातें भग जाते हैं. तैसे ही कुटंबो के बूंद में, रहे हुये मनुष्य को, काल सिंह ले जायगा. तब सब मुह ताकते ही खडे रहेंगे. परं कोई भी बचा नहीं सकेगा.
तैसेही आगे की तुम्हरी सहाय करने तुम्हरी संपती में से कुछ भी साथ न आवगा. कहा हैं2 श्लोक धनश्च भौमो पशु वाश्व गोष्टी, कान्ता घर
द्वार जनस्य मशाणं देह श्वेता थां परलोक
मार्गे, कर्माणगो गच्छति जीव एका. अर्थात्, धन, जमीन, पशु, घर संपती, यह सब निजस्थान रह जायगी, कान्ता प्रिय पत्नी. कों दारा कहते है, वो दरवाजे तक आयगी, और कुटम्ब परिवार सब स्मशाण तक (देह) को पहोंचा ने आयंगे, यह सरीर चितामें जल जायगा. आगे, अपने किये हुये शु. भाशुभ कर्मोकों साथ ले चैतन्य इकेला जायगा.