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________________ १७९ तृतीयशाखा धर्मध्यान. • अहार करनेसें. १५४ निरोगी दिखे, और रोगिष्ट होवे सो क्या कारण ? उ--लांच ले झूटा न्याय करनेसे. १५५ प्र - संयोग मिल वियोग क्यों होवे ? उ-कृस्घनता, मित्र द्रोहो और विश्वास घात करनेसे. १५६ प्र--डरकण स्वभाव कायसे होवे ? उ-कंठोर दंडी कोटवाल होवे सो. तथा अन्यको डरावे सो. १५७ प्र - खुजली कायसे चले ? उ-तेंद्री ज्यू लीख खटमल पिस्सू उदाइ दी मारेनेसे. १५८ प्र - ज्यूंवो ज्यादा क्यों पडे ? उ--मच्छ अहारी करनेसे. ज्यूंगा अभी आदीमें डाल मारे तो. १५९ प्र तपस्या क्यों नहीं बने ? उ-तप जपका अभीमान करे तो. तप करते अवाय देवे तो. · १६० प्र असुहा मणी भाषा क्यों लगे ? उ-वाक्य चातुरीका अभीमान करे तो कठोर बचन बोले तो. १६१ प्र - अपयशी क्यों होवे ? उ-सासू, नणंद, देराणी, जेठाणी, भाइ भो जाइ का ईर्षा करे तो. १६२ प्र-- तरुणपणे स्त्री क्यों मरे ? उ-भोगकी faa अभीलाषा रखे. अमर्याद विषय सेवे तो. १६४ प्र -छमुहिम मनुष्य कौन होवे ? उ-नील, गुलीके कुंड करे छमछमकी घात करे सो.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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