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________________ १७८ ध्यामकल्पतरू । णा पाणी पीवे, जीवाणीका जल न करेतो. . १४३ प्र-मनुष्य कायसे होवे? क्षमा दया, नम्रतासे १४४ प्र--स्त्री मरके पुरुष कायसे होवे? उ-सत्य, . शील, संतोष विनय आदी गुण धारन करनेसे. १४५ प्र--देवता कौन होवे ? उ-साधु, श्रावक, तापस और अकाम (मन विन) निर्जरा करनेसे. __१४६ प्र-लक्ष्मी स्थिर कायसे रहे ? उ-दान देके पश्चाताप नहीं करे तो. १४७ प्र-काणा कायसे होवे? उ-वीज, फल, फुल छेदे, हार गजरे वगैरे बनानेसे. १४८ प्र-गलित कुष्टि कायसे होवे? सुवर्ण चांदी. लोहा तांबा वगैरे की खानो खोदनेसे. १४९ प्र-यश करते अपयश क्यों होवे ? उ-सचित औषधी करनेसे. अन्यकृत उपकार न माननेले. १५० आँखमें बामणी कायसे होवे? निमक(लुण के आगर खोदनसे. १५१ प्र-कांख मंजरी कायसे होवे ? सम्यक द्रष्टी हो मिथ्यात्वी का अनार्योंका काम करनेसे. . १५२ रुंड मुंड सरीर कायसे होवे ? उ-न्यायाधिश हो कठण दंड देनेसे. १५३ प्र-कंठमाल कायसे होवे? उ-मच्छीका
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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