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सृतीयशाखा-धर्मध्यान. १६७ ल्पआयुष पावें. ___६५ प्र-सदा चिंता कायसे रहें ? उ-बहुत जीवकों चिंता उत्पन्न होवे, वैसी बात करें, अन्यको उदास देख खुशी होवे. सो सदा चिंता करने वाला होवें.
६६ प्र-निश्चित कायसे रहें ? उ-दूसरे की चिंता का भंग करे, धर्मात्माकों देख खुश होवे, दुःख पीडि तको संतोष उपजावे. सो सदा निश्चित रहें.
६७ प्र-दास कायसे होवें? उ-नौकरोंको बहुत सतावें, बहुत काम लेवें, परिवारका शैन्याका, अभी मान करे, सो बहुत जनोंका दास होवें.
६८ प्र-मालिक कायसे होवें? उ-धर्मी जनोंकी तपस्वियोंकी वयावञ्च करे, धर्मात्मा दुःखी जनोका पोषण करे, अन्यके पास धर्मात्माकी सेवा भक्ती करावे, करते देख खुशी होवे, सो बहुतोंका मालिक होवें.
६९ प्र-नपुशक कायसे हो? उ-नपुशक के नृत्य गायन, ठठे देख खुशी होये. पुरुषको स्त्रीका रूप बना के नृत्य करावें, बैल, घोडे, आदी पशू या मनुष्यका लिंग छेदन करे, नपुंशक से विषय सेवन करे, आप नपुंशक जैसी चेष्टा करे, स्त्री पुरुषके संयोग्य मिलाने की दलाली करें, बेंद्री, तेंद्री, चौरिंद्रीकी हिंशा करे, सो नपुंशक होवें.