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ध्यामकल्पतरू. वगैरे होत.
६१ प्र-कू कवी (भाट चारण) कायसे होवे ? उ-कू कथा का प्रेमीबने, लोकीक (मिथ्य) शास्त्रका दान दिया, धर्म कथाका नाम रख विकार उत्पन्न होवें ऐसी कथाकरे, विषय पोषक कवीता रचे, विषय जनराग रागणी सुणे , उनपे प्रेम करे, सो कू, कवी भाट चारण होवें. .
६२ प्र-सूकवी कायसे होवे ? उ-जिनराज मुनी. राजके गुग कीर्तन सुग हर्षलावे, शास्त्रकर्ता गणधरो की आचार्यों की परसंस्या करें. ज्ञानवृधीमें धन लगा वें, धर्म कवीयों को सहाय्यदे, धर्मकवीता की गुप्त रहस्यों से हर्षावे सो, विद्वान कवी होवें.
६३ प्रदीर्घ (लम्बा) आयुष्य कायसे पावे? उमरते जीवोंको द्रव्य दे छोडावे. उन्हे खान, पान,स्था नका सहाय दे, बंदीवान छुडावे, संसारमें उदासीनता धरे, दया भाव रख्खे, दीन अनाथोंको सहाय देवें, तो दीर्घ आयूष वाला होवें. __६४ प्र--ओछा आयुष्य कायसे पावे? उ--जीव घात करे, गर्व गलावे, आजीवका का भंग करे, ज्यूं खटमलादी मारे, शुद्ध लेने वाले साधूको अशुद्ध आहार प्रमुख देवें, अग्नी विष शस्त्रादी से जीव मारे, सो अ