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ध्यानकल्पतरू.
७० प्र - स्त्री कायसे होवें? उ-स्त्रीयोंके विषयमें अत्यं त लुब्ध होवें, पुरुष हो स्त्रीका रूप बनावें, स्त्रीयोंकी तरह चेष्टा करे या दगाबाजी करे, सो स्त्री होवें.
७१ प्र - निगोदमें कायसे जाय? उ-देव, गुरु, धर्मकी निंदा करनेसे. कंद मूलता भक्षण करनेसे.
७२ प्र- एकेंद्री कायसे होय? उ-पृथवी, पाणी, अग्नी हवा, वनस्पती, कंद-मूल, वृक्ष, घास, फुल, पत्र, का छेदन, भेदन, करें सो एकेंद्री होवें.
७३ प्र - विकेंद्री कायसें होवे ? उ-निर्दयपणें, त्रस - की घात करें, अनाज (दाणे) बहुत दिन संग्रह कर रक्खें, त्रस जीव (कीडे) की उत्पति होवें ऐसी वस्तु का संग्रह कर, उन्हकी घात करें, मच्छर, खटमल, निवारने धूम्रादिक उपचार कर उन्हे मारे, बोर प्रमुख त्रस जीव उत्पन्न होवें, ऐसे फलोंका भक्षण करे, मोरी, गटार में पैशाब करेसो मरके विकेंद्री (बेन्द्री, तेन्द्री, चौरिन्द्री) होवे.
७४ प्र - कलंग ( अंगोपंग रहित ) कायसे होवे ? उ - जीवोकें हाथा, पांव, कान, नाक, अंगुली, यादी अंगोपांगका छेदन भेदन, करे, कान कतरे, बींदे, कंगूरा करे, ऐसा करते देख हर्षाने तो कलंग ( अंगोपांग रहित ) होंवें.