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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १६३ ४४ प्र-सुख विलासी कायसे होय? उ-आपको प्राप्त हये भोगाप भोग भोगवे नहीं. अपने भोगकी वस्तू दान पुण्यमें तथा स्वधर्मीयोंको दे के पोषे, सो इच्छित भोग भोगवे. ____४५ प्र-क्रोधी कायसे होय ? उ--आप क्रोध करे, क्रोधीयोंकी परसंस्या करे, मनुष्य, पशु, देवता ओके जुधकी बातों सुन हर्षावे. शिकार खेले, क्षमवंत को संताप उपजावे, निंदा करे, हाँसी करे सो क्रोधी होवे. ४६ प्र-धूर्त कायसे होय? उ-धर्म करणीमें, दान, पुण्यमें जप, तप, में कपट करे थोडा कर बहुत बतावे पोमावे, सो दगाबाज, धूर्त होवे. ४६ प्र-सरल कायसे होय? उ-सरल भावसे करणी करे, करके पोमावे नहीं, सो सरल स्वभावी होवे. ____४८ प्रचार कायसे होय? उ-चारे कर्मको अच्छा जाने, चोरेको सहाय दे. चारेकी वस्तु ले, चोरकी कला बतावे, चोरकी परसंत्या करे, सो चोर होवे. __ ४९ प्र--साहूकार काय होय ? उ--अवत्तवृत्त धारण करे, चोरका परिचय वळे, सो साहूकार होवे. .. ५० प्र-कसाइ कायसे होय? उ-हिंशाकी परसंस्य। करे, हिंशा करनेकी कला बतावें. हिंशा के शस्त्र बना वे, दया की निंदा करे, सो हिंशक कषाइ होवें. .
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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