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ध्यानकल्पतरू
पशु पक्षीको बाडेमें, पिंजरेमें, रोक रक्खे, दूसरेको प राधीन देख खुशी होवे. दूसरे की स्वाधीनता नष्ट करे सो पराधीन होवे..
४० प्र-स्वाधीन कायसे होवे ? उ-कुटम्बको, नोकरोको संताप न दे; अहार, वस्त्र, स्थानकी साता दे, शक्ती उप्रांत काम नहीं कराय. मनुष्य, पशू, पक्षी, आदीको बंदीखानेसें छोडावे, स्वाधीन करे, अपणा स्वछंदा रोकके गुरूके च्छंदे, (हुकम में) चले, सो स्वाधीन स्वतंत्र होवे.
४१ प्र- कुरूप कायसे होवे ? उ-आप रूपवंत हो अभीमान करे, दूसरे सुरूपर्वतोंकी निंदा करे, कुरूपोंकी हाँसी अपमान करे, आल चडाय शृंगार बहुत सजे, सो कूरूपी होवे.
४२ प्र-सुरूप कायसे पावे? उ- सुन्दर होके भी अभीमान न करे, सुरूपणी स्त्रियादिको विकार द्रष्टी से नहीं देखे, कुरूपोंका निरादर न करे, सील पाले सो सूरूप होय.
४३ प्र -धन विलस क्यों नहीं सके ? उ-अन्यको खान पान वस्त्र भूषणकी अंतराय दे. आप और समर्थ हो अच्छे भोग भोगवें, आश्रितोंको त्रसाय, अन्यको भोगोपभोग भोगवते देख आप दुःखी होय, वो धन प्राप्त होके भी भोगव नहीं सके..