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कीमती कार्यार्थ बबई गयेथे, वहां महाराज श्री जीके दर्शन कर वीनंती करी के दक्षिण हैद्राबाद में जैनीयों के घर तो बहूत है, परन्तु मुनीराज का आगम बिलकुल नहीं है, जो आप पधारोगे तो बडा उपकार होगा. यह बात महाराज श्रीको पसंद आइ. चर्तुमास बाद बबइ से विहार कर. इगत पुरी पधारे, चर्तुमास किया, और यहां के श्रावक मूल चंदजी टॉटयिा वगैरे ने महाराज श्री की बनाइ 'धर्म तत्व संग्रह' नामे ग्रन्थ की १५०० प्रतों छपवा के अमुल्य भेटदी. वहां से विहार कर वे जापुर(औरंगाबाद)आये यहां के श्रावक भीखम चंदजी संचेती ने "धर्म तत्व संग्रह" की गुजरातीमें १२०० प्र. तो छपवाके अमुल्यभेट दी. वहां से जालणे पधारे औ र आगे विहार करने लगे तव सब श्रावकों ने मना कि या की इधर आगे कोइ साधु गये नयींहै, आप पधा रोगे तो बडी तकलीप पावोगे. परन्तु श्री वीर परमा स्मा के वीर मुनीवरो आगे के आगे बढतेही गये औ र क्षुधा त्रषादी अनेक आति कठिण पीरसह सहन क रते, अनेको को नवे भेषसे अश्चर्य उपज्याते अपुर्व धर्म का सत्य स्वरूप बतातेसं. १९६३जेष्ट सुदी१२ शनीवार को चार कमान पावन करी. लाला नेतरामजी राम नारायणजीके दिये मकानमे चतर्मास किया. चौमामे