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इन महा पुरुषाने श्री अमोलख ऋषिजी को जैनमार्ग दीपाने लायक जान तहामनसे ज्ञानका अभ्यास कराया सूत्रों की रहस्य समझाइ, जिस प्रसाद से अमोलख ऋषिजीने गद्य पद्य में अनेक ग्रन्थ बनाये, और बना रहे हैं, और अनेक स्वमति परमति को समझाये और - समझा रहे हैं श्री अमोलख ऋषिजीके सवंत १९५६ के फागुन में आसवालसंचेतीज्ञात्ती के मोती ऋषिजी नामके शिष्य हुवेथे. सं१९६०का चतुरमास श्री अमोलख ऋषिजीका घोड नदीथा ( तब जैन तत्व प्रकाश नामे बडा ग्रन्थ शिर्फ ३ महीने में रचाथा) उसवक्त तपस्वी जी श्री केवल ऋषिजीका चतुर्मास अहमदनगरथा. चौ मासे उतरे वाद समागम हुवा. तब तपस्वीजी कहने लगेकी मेरी बृद्ध अवस्था हुइहै, मुजे संयमका सहाय देना तेराकृतव्य है. तब अमोलख ऋषिजी श्वशिष्य सहित श्री तपस्वी जी के साथ विचरने लगे. सं१९६१ का चतुर्मास श्री सिंघ के अग्रह से बंबइ हनुमान गली) में किया यहां जैन स्थानक वासी रत्न चिन्ता मणी मित्रमं डलकी स्थापना हुई, और इस मंडलकी तर्पसे महाराज श्री अमोल ऋषिजी की बनाइ हुइ "जैनामुल्य सुधा" नाम छोटासी पुस्तक प्रसिद्ध हुई. यहां मोती ऋषिजी स्वर्गस्थ हुये. उस वक्त हमारे पिताजी श्री पन्नालालजी