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एक अन्य स्थल पर जलपूर्ण कलश, श्रृंगार (जलपूर्ण झारी), चंवर सहित दिव्य छत्र, दिव्य पताका को भी 'मांगलिक' माना गया है (द्र. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र- 5/1 5 पृ. 293-295)।
अन्यत्र स्थल में, चन्दन-कलश, पुष्पमाला आदि से 'यक्षायतन' (देवमूर्ति-स्थान) को सुसज्जित किया गया बताया गया है (औपपातिक सूत्र-2), जिससे इनकी मांगलिकता सूचित होती है। ___परम्परा- भेद से (दिगम्बर परम्परा में) निम्नलिखित आठ मंगल द्रव्य माने गए हैं- (1) भंगार (जलपूर्ण झारी) (2) कलश (3) दर्पण, (4) चमर (5) ध्वजा (6) व्यजन (पंखा, तालवृन्त), (7) छत्र (8) सुप्रतिष्ठ (आकृति-विशेष) (द्रष्टव्यः तिलोयपण्णत्ति- 4/ 1879-188, हरिवंश पुराण- 2/72)।
एक अन्य स्थल पर, कमलमाला, चमर, घंटा, झारी (भुंगार), कलश, दर्पण, पात्री, शंख, सुप्रतिष्ठक, ध्वजा, धूपनी, दीप, कूर्च, पाटलिका, झांझ-मजीरा आदि उपकरणों को जिन-प्रतिमा के समीपवर्ती बताया गया है और इन द्रव्यों की मांगलिकता सूचित की गई है (द्र. हरिवंशपुराण- 5/364, तिलोयपण्णत्ति- 4/1825, 4/186769, दिग. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- 13/112-21)। एक अन्य (दिगम्बर-ग्रन्थ) वसुनन्दि-कृत प्रतिष्ठसार संग्रह (6/35-36) में श्वेतछत्र, दर्पण, ध्वज, चामर, तोरणमाला, तालवृन्त (पंखा), नन्द्यावर्त, प्रदीप- इन्हें भी मांगलिक माना गया है।
उपर्युक्त दोनों परम्पराओं की मान्यताओं का अनुशीलन करने पर, जो सर्वसम्मत मंगल द्रव्य व धार्मिक प्रतीक निश्चित होते हैं, वे इस प्रकार हैं:
(2) स्वस्तिक
दोनों परम्पराएं स्वस्तिक को माङ्गलिक प्रतीक स्वीकार करती हैं। प्रत्येक भारतीय स्वस्तिक चिन्ह को अपने घरों आदि में
जैन धर्म त वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता,74_'