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________________ मांगलिक द्रव्य व धार्मिक प्रतीक दोनों परम्पराओं में पूर्णतः या आंशिक रूप से मान्य हैं । प्रारम्भ में वैदिक परम्परा में मान्य मंगल द्रव्यों की चर्चा की जा रही है: - (1) दोनो परम्पराओं में मंगल द्रव्य वैदिक परम्परा में कुछ द्रव्यों का मांगलिक द्रव्यों के रूप में व्यवहार होता था । उन द्रव्यों को घर में रखना एवं उत्सव आदि में यथाविधि उनका उपयोग करना गृहस्थ के लिए श्रेष्ठ माना जाता था। भैंस तथा गाय को एक साथ रखना कल्याणप्रद बताया गया है । चन्दन, वीणा, दर्पण, मधु, घृत, लोहा, ताम्र, शंख, शालिग्राम, गोरोचन आदि को भी मांगलिक द्रव्य बताया गया है (महाभारत - 5 / 4/1-11)। भृष्टधान्य (भुना अन्न), चन्दन - चूर्ण हर मांगलिक कृत्य में छितराये जाते थे ( महाभारत - 3 / 257 / 2) | दही का पात्र, घी एवं अक्षत, कण्ठभूषण, बहुमूल्य वस्त्र - कल्याणकारी द्रव्य माने जाते थे (महाभारत- 8/1/11-12 ) । श्वेतपुष्प, स्वस्तिक, भूमि, सुवर्ण, रजत, मणि आदि का स्पर्श भी मंगलदायी कहा गया है (महाभारत- 12/ 4/7-8) | महाभारतकार कहते हैं, जो व्यक्ति प्रातःकाल शय्या त्याग करके गो, घृत, दधि, सरसों, प्रियंगु का स्पर्श करता है, वह सब प्रकार के पाप से मुक्त होता है (महाभारत- 13/126/18)। उक्त निर्जीव द्रव्यों के अतिरिक्त, गौ, अश्व, बकरी, बैल - इन्हें भी मांगलिक माना जाता था (द्र. महाभारत - 5 / 4-11, 8 / 1 /11-12)। जैन परम्परा में निम्नलिखित आठ मंगल द्रव्य माने गये हैं- (1) स्वस्तिक ( 2 ) श्रीवत्स (3) नन्द्यावर्त ( आकृति - विशेष ), (4) वर्द्धमानक (सिकोरा, या स्वस्तिक या पुरूषारूढ पुरष आदि), (5) भद्रासन (6) कलश (7) मत्स्य और (8) दर्पण (द्र. औपपातिक सूत्र - 1/34 व 49 पर अभयदेव कृत वृत्ति, ज्ञाताधर्मकथा - 1 / 153 पृ. 71, लोक प्रकाश-15/14)। प्रथम खण्ड /73
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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