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________________ राजा ही तपस्वियों पर अनर्थ करने लगे ता उसे कौन दूर कर सकेगा? यदि जल ही आग को भड़काने लगे तो फिर उसे कौन बुझा सकेगा ।' उत्तर में पद्म ने बलि को राज्य दे देने की समस्त घटना सुनाई और कुछ कर सकने में अपनी असमर्थता प्रकट की । तब विष्णुकुमार मुनि वामनरूप धारण करके बलि के यज्ञ में पहुंचे और प्रार्थना करने पर तीन पैर धरती उससे मांगी । जब बलि ने दान का संकल्प कर दिया तो विष्णुकुमार ने विक्रियाऋद्धि के द्वारा अपने शरीर को बढ़ाया । उन्होंने अपना पहला पैर सुमेरू पर्वत पर रखा, दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर रखा और तीसरा पैर स्थान न होने से आकाश में डोलने लगा । तब सर्वत्र हाहाकार मच गया, देवता दौड़ पड़े और उन्होंने विष्णुकुमार मुि से प्रार्थना की, 'भगवन्! अपनी इस विक्रिया को समेटिये । आपके तप के प्रभाव से तीनों लोक चंचल हो उठे हैं । तब उन्होंने अपनी विक्रिया को समेटा | मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ और बलि को देश से निकाल दिया गया (द्रष्टव्यः हरिवंशपुराण- 2/29-62, उत्तरपुराण- 7 / 274-3)1 उक्त घटना जैन धर्म-शासन व संस्कृति की रक्षा हेतु प्रेरणा देती है और जैन शासन पर कुठाराघात करने वालों पर प्राप्त हुई विजय की ऐतिहासिक स्मृति को भी यह संजोए हुए है। संभवतः जैन शासन व संस्कृति की रक्षा हेतु परस्पर एकजुट होने की प्रतिज्ञा करने के लिए वार्षिक समारोह के रूप में मनाकर उक्त घटना को चिरस्मृत करने का प्रयास इस पर्व के रूप में किया जाता है । मांगलिक द्रव्य और धार्मिक प्रतीक वैदिक व जैन- दोनों परम्पराओं में कुछ निर्जीव व सजीव वस्तुओं को 'मांगलिक' माना गया है। इसी तरह, कुछ धार्मिक प्रतीक भी उन परम्पराओं में मान्य किये गए हैं। इनमें से कुछ जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता / 72
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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