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________________ किसी समय उज्जैनी नगरी में श्रीधर्म नामका राजा राज्य करता था। उसके चार मंत्री थे- बलि, बृहस्पति, नमुचि, और प्रहलाद । एकबार जैनमुनि अकम्पनाचार्य सात सौ मुनियों के संघ के साथ उज्जैनी में पधारे। मंत्रियों के मना करने पर भी राजा मुनियों के दर्शन के लिए गया। उस समय सब मुनि ध्यानस्थ थे। लौटते हुए मार्ग में एक मुनि से मंत्रियों का शास्त्रार्थ हो गया। मंत्री पराजित हो गए। क्रुद्ध मंत्री रात्रि में तलवार लेकर मुनियों को मारने के लिए निकले। मार्ग में उसी शास्त्रार्थ के स्थान पर ध्यान में मग्न अपने प्रतिद्वन्द्वी मुनि को देखकर मंत्रियों ने उन पर वार करने के लिए जैसे ही तलवार ऊपर उठाई, उनके हाथ ज्यों के त्यों रह गये। दिन निकलने पर राजा ने मंत्रियों को देश से निकाल दिया। चारों मंत्री अपमानित होकर हस्तिनापुर के राजा पद्म की शरण में आये। वहां बलि ने कौशल से पद्म राजा के एक शत्रु को पकड़कर उसके सुपुर्द कर दिया। पद्म ने प्रसन्न होकर मुंह-मांगा वरदान दिया । बलि ने समय पर वरदान मांगने के लिए कह दिया। कुछ समय बाद मुनि अकम्पनाचार्य का संघ विहार करता हुआ हस्तिनापुर आया और उसने वहीं वर्षावास करना तय किया। जब बलि वगैरह को इस बात का पता चला तो वे बहुत घबराये, पीछे उन्हें अपने अपमान का बदला चुकाने की युक्ति सूझ गयी। उन्होंने वरदान का स्मरण दिलाकर राजा पद्म से सात दिन का राज्य मांग लिया। राज्य पाकर बलि ने मुनिसंघ के चारों ओर एक बाड़ा खड़ा करा दिया और उसके अन्दर पुरूषमेध यज्ञ करने का प्रबन्ध किया। _ विष्णुकुमार मुनि हस्तिनापुर के राजा पद्म के भाई थे। वे तुरन्त अपने भाई पद्म के पास पहुंचे और बोले- 'पद्मराज! तुमने यह क्या कर रखा है? कुरुवंश में ऐसा अनर्थ कभी नहीं हुआ। यदि प्रथम खण्ड/71
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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