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________________ मद्यपलनिशासनपंचफलीविरतिपंचकाप्तनुती। जीवदया जलगालनमिति च क्वचिदष्ट मूलगुणाः॥ - मद्य-त्याग, मांस-त्याग, रात्रिभोजन-त्याग, (बड़फल, पीपल फल, पाकर फल, अंजीर, गूलर-इन) 5 उदुम्बर फलों का त्याग, पांच परमेष्ठियों का नमन, जीवदया, जल छानकर पीनाये आठ मूलगुण हैं। यह अद्भुत साम्य है कि उक्त निर्देश वैदिक परम्परा में भी दृष्टिगोचर होता है। मनुस्मृति (6/46) में स्पष्ट कहा गया है: वस्त्रपूतं जलं पिबेत् (वस्त्र से छानकार ही जल पीना चाहिए)। (मृत्यु का निर्भव व निर्विकार होकर वरण:-) मृत्यु के समय व्यक्ति शान्त, निर्भय, निर्विकार, आसक्त व साम्यभावी रहना चाहिए-इस तथ्य को वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में रेखांकित किया गया है । वैदिक परम्परा में गीता (8/6) का स्पष्ट उद्घोष है: यं यं वापि स्मरन् भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्। - तत्तदेवैति कौन्तेय सदा तद्भवमास्थितः॥ - मृत्यु-काल उपस्थित होने पर, व्यक्ति जिस-जिस भाव को स्मृति में रख कर शरीर छोड़ता है, उस-उस भाव (अगले जन्म में) को प्राप्त करता है। इसी भाव को और भी अधिक स्पष्ट करते हुए उपनिषद् का भी कथन है: देहावसानसमये चित्ते यद् यद् भावयेद् । व तत्तदेव भवेज्जीव इत्येवं जन्म-कारणम् ॥ (योगशिखोपनिषद् 1/31) अर्थात् देह-त्याग करते हुए मन में जैसे भाव होते हैं, उन्हीं के अनुरूप अगला-जन्म प्राप्त करता है। - उपर्युक्त कथनों में वैदिक ऋषि की यह प्रेरणा भी निहित है कि परवर्ती अच्छी योनि/जाति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को मृत्यु प्रथम खण्ड/59
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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