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________________ महाभारत (12/191/15) में कहा गया है:- अहिंसा सत्यमक्रोधः, सर्वाश्रमगतं तपः । अर्थात् सभी आश्रमों के लिए अहिंसा, सत्य व क्षमा- ये सामान्य धर्म हैं। इसी प्रकार पुलस्त्य स्मृति (22) तथा गरुड पुराण (1/25/22) में सभी वर्गों व आश्रम धर्म के अनुयायियों के लिए अहिंसा, सत्य, शौच (पवित्रता), दया व क्षमा को 'सामान्य धर्म' बताया गया है। जीवन में दया, क्षमा, संयम, अचौर्य, सत्यभाषण, परोपकार, सहिष्णुता, त्याग आदि जितनी भी प्रशस्त भावनाएं या प्रवृत्तियां हैं, वे सब 'अहिंसा' में समाहित हैं। महाभारत (13/11 5/69) के अनुसार अहिंसा धर्म को जीवन में उतारने वाले व्यक्ति स्वर्ग सुख को हस्तगत करते हैं। जैन परम्परा में प्रत्येक गृहस्थ और प्रत्येक श्रमण के लिए 'व्रत' का पालन करना अपेक्षित है। ये व्रत 5 हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह । गृहस्थ इन व्रतों को यथाशक्ति स्थूल रूप से पालता है जब कि श्रमण पूर्ण रूप से । इसलिए गृहस्थ या श्रावक का व्रत 'अणुव्रत' कहलाता है और श्रमण का महाव्रत (उपासक दशांग-1/11, हरिवंश पुराण-58/116. तत्त्वार्थसूत्र-7/1-2)। (मांसादि-त्याग) अहिंसक चर्या की प्रधानता के कारण, दोनों परम्पराओं में हिंसाबहुल मांस-भक्षण का सर्वथा निषेध किया गया है। वैदिक परम्परा का आदेश है-न मांसमश्नीयात् (तैत्तिरीय ब्राह्मण- 1/1/9/71-72) अर्थात् मांस नहीं खाना चाहिए। स्मृतिकारों व महाभारतकार ने मधु, मांस, मद्य- इन सभी को, सम्भवतः हिंसा से सम्बद्ध होने के कारण, त्याज्य बताया है (मनुस्मृति-6/9,2/177, महाभारत-12/11/22)। जैन परम्परा में प्रत्येक श्रावक के लिए मद्य व मांस आदि को हिंसाबहुल बताते हुए सर्वथा व नियमतः असेवनीय माना गया है(पुरुषार्थसिद्धयुपाय-4/25-27/61-63,हैम योगशास्त्र-3/18-22,33 आदि)। प्रथम खण्ड:57
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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