________________
वैदिक अवतारों की तथा जैन तीर्थंकरों की संख्या में भी साम्य दृष्टिगोचर होता है। वैदिक परम्परा के भागवत पुराण में भगवान् के अवतारों की संख्या असंख्य बताई गई है- अवतारा ह्यसंख्येयाः हरेः सत्त्वनिधेः द्विजाः (भागवत- 1/3/26) | वैदिक हरिवंशपुराण व महाभारत में अवतारों की संख्या की असंख्यता का आधार अनन्त कालचक्र को माना है:
प्रादुर्भावसहस्राणि अतीतानि न संशयः । भूयश्चैव भविष्यन्तीत्येवमाह प्रजापतिः ॥
(हरिवंशपुराण -1/41/41)
अतिक्रान्ताश्च बहवः प्रादुर्भावा ममोत्तमाः ।
(महाभारत - 12 / 339/16)
जैन परम्परा की दृष्टि वे विचारें तो जैन तीर्थंकरों की संख्या भी असंख्य मानने में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि उत्सर्पिणीअवसर्पिणी चक्र अनादि काल से चल रहे हैं और अनन्तकाल तक चलते रहेंगे और इस प्रकार तीर्थंकरों की संख्या भी असंख्य स्थिति को प्राप्त कर सकती या उसे भी पार कर सकती है।
कुछ प्रमुख वैदिक अवतारों को लक्ष्य में रखकर वैदिक अवतारों की नियत संख्या भी मानी गई है । प्रारम्भ में यह संख्या दस थी (द्र. महाभारत - 12 / 339/13-14, मत्स्य पुराण- 285 / 6-7, पद्मपुराण6/43/13-15, उत्तर. 257/4-41 आदि) किन्तु उसे बढा कर 22 व 24 तक पहुंचा दिया गया | भागवत पुराण (1/3 अध्याय) में 22 निम्नलिखित अवतार बताए गए हैं- 1. कौमार सर्ग (सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार), 2. वराह, 3. नारद 4. नर-नारायण 5. कपिल, 6. दत्तात्रेय, 7. यज्ञ, 8. ऋषभदेव 9. पृथु, 1. मत्स्य, 11. कच्छप (कूर्म), 12. धन्वन्तरि, 13. मोहिनी 14. नृसिंह, 15. वामन, 16. परशुराम, 17. वेदव्यास, 18. राम, 19. बलराम 2. कृष्ण, 21. बुद्ध और 22. कल्कि । टीकाकारों ने इनमें दो अवतारों - 23. हंस व 24. परमहंस
प्रथम खण्ड / 55