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(4) स्कंद, षण्मुख, या कार्तिकेय शिव के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके छह मुख कहे गये हैं। ऋषभदेव ने भी असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प, इन छह कर्मों का उपदेश दिया। इन्हीं छह कर्मों के माध्यम से ऋषभदेव ने अहिंसक और शान्तिपूर्ण समाज की रचना का प्रयत्न किया। कार्तिकेय के छह मुखों में ऋषभदेव की छह शिक्षाओं में समानता ढूंढी जा सकती है।
(5) शिव के कनिष्ठ पुत्र गणेश ने अपने अग्रज कार्तिकेय से युद्ध किया और उन्हें पराजित करके भौतिक शक्तियों पर नीति और बुद्धि का वर्चस्व स्थापित किया । ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली ने भी अग्रज भरत से युद्ध किया और भौतिक शक्तियों पर न्यायनीति का तथा आत्मशक्ति का वर्चस्व अपने ज्येष्ठ भ्राता को पराजित करके स्थापित किया।
(6) शंकरजी पार्वती के पति थे। पर्वत-निवासिनी जनता को पार्वती कहा जाता है। उस पार्वती (जनता) के प्रभु (पूज्य) होने के कारण भ. ऋषभ को पार्वतीपति भी कहा जाता है।
- मध्य लोक में शिवजी के 'शिवलिंग' की पूजा की जाती है। शिव यानी मुक्ति, लिंग यानी पहिचान । अर्थात् जिस आत्मधर्म के द्वारा आत्मा को आत्मा की पहिचान हो, और अन्त में आत्मा शिव का रूप प्राप्त कर ले, वह आत्मा शिवात्मा (सिद्धात्मा) है। भगवान् ऋषभ भी आत्मा की पहिचान कर अन्त में शिवात्मा हो गये।
__(7) शिव ने अपने परिकर के माध्यम से अहिंसा का सन्देश दिया। यह उनकी अहिंसक शक्ति का ही चमत्कार था कि देवी पार्वती के वाहन सिंह ने शिव के वाहन वृषभ को, तथा कार्तिकेय के वाहन मयूर ने गणेश के वाहन मूषक को कभी आतंकित नहीं किया। शिव के आभूषण स्वरूप नाग-समूहों ने भी मूषकराज को प्रताड़ित नही किया और उन नाग-समूहों को कार्तिकेय के मयूर से कभी कोई विपत्ति नहीं सहनी पड़ी। प्राकृतिक रूप से शत्रु-भाव
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