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स्वयं समाप्त किया था। दूसरी तरफ, वैदिक परम्परा में गणेश को भी विघ्नविनाशक देव के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
इतना ही नहीं, अन्य अनेक साक्ष्य व प्रमाण शिव व ऋषभ की एकता की मान्यता को समर्थित करते हैं। अनेक विद्वानों ने इस सम्बन्ध में अपने-अपने विचार प्रकट किए हैं, जिनका सार यहां प्रस्तुत किया जा रहा है:
____ विचार किये जाने पर ऋषभदेव और शिव के स्वरूप में अनेक ऐसे साम्य सामने आते हैं जो यह सोचने पर बाध्य कर देते हैं कि ऋषभदेव और शिव शायद दो व्यक्तित्व या दो अवतार नहीं थे। ऐसा मानने के पर्याप्त कारण हैं कि ऋषभदेव और शिव एक ही समान व्यक्तित्व के दो समानान्तर रूप भारत की दो प्रमुख परम्पराओं में प्रतिष्ठित हो गये हों।
यहां हम कुछेक ऐसी ही विशेषताओं पर विचार करेंगे जिनके आधार पर शिव और ऋषभदेव की समानता को बल मिलता है
(1) शिव कैलाशवासी थे। ऋषभदेव ने मरूदेवी की कोख से जन्म लिया था ।आप्टे के संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष में 'मरू' शब्द का एक पहाड़ या पर्वत भी अर्थ किया गया है। ऋषभदेव ने संसार त्याग कर अपनी साधना के लिए कैलाश को ही चुना। वहीं से उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
(2) शिव का वाहन नन्दी या वृषभ प्रसिद्ध है। ऋषभदेव का चिन्ह भी वृषभ ही है। उनकी प्रतिमाओं की पहचान वृषभ चिन्ह से ही होती है जो सदैव उनके आसन पर अंकित रहता है।
(3) शिव का विषपान प्रसिद्ध है। ऋषभदेव ने भी समस्त एकान्त, या परस्पर निरपेक्ष धारणाओं/मान्यताओं का विष ग्रहण करके, स्याद्वाद दृष्टि से और अनेकान्तमयी वाणी से उसमें अमृतत्व की उत्पति की। वही अमृत उनकी वाणी में बिखरता रहा।