________________
जयघोष मुनि ने ब्राह्मणों को सद्ज्ञान दिया और सच्चे ब्राह्मण के स्वरूप को समझाया । निष्कर्ष यह है कि वैदिक शिव व जैन तीर्थंकर ऋषभ या जैन मुनि में वैदिक यज्ञविरोधक होने के साम्य ने दोनों परम्पराओं को निकट ला दिया। इस प्रक्रिया में जैन परम्परा के सर्वोच्च देव ऋषभदेव तथा वैदिक परम्परा के शिव में साम्य स्थापित करने का प्रयास भी सम्मिलित है ।
(शिव व ऋषभ की एकता:-)
शिव व ऋषभ में उपर्युक्त साम्य को देखकर कुछ विद्वानों, इतिहास-विदों व सांस्कृतिक अध्येताओं ने शिव व ऋषभ - दोनों को एक ही प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। हो सकता है, भगवान् ऋषभदेव ही वैदिक परम्परा में 'शिव' के रूप में स्वीकृत हो गए और उन्हें वैदिक संस्कृति के अनुरूप कथानकों के माध्यम से 'महादेव' के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई । या यह भी हो सकता है कि वैदिक परम्परा के 'शिव' की विशेषताओं को जैन - परम्परा के अनुकूल जानकर, उन्हें ऋषभदेव के जीवन-चर्या में समाहित कर लिया गया ।
ऋषभदेव व शिव की पारिवारिक स्थिति पर दृष्टिपात करें तो उनमें प्रतीकात्मक ‘साम्य' आश्चर्यजनक रूप में दृष्टिगोचर होता है । ऋषभदेव के दो पुत्र थे, जिनमे बाहुबलि ने निवृत्तिमार्ग का अनुसरण कर सर्वप्रथम सिद्ध - बुद्ध-मुक्त होने का गौरव प्राप्त किया, जब कि भरत ने चक्रवर्ती बन कर प्रवृत्तिमार्ग का अनुसरण किया । अंत में वे भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। दूसरी तरफ, वैदिक परम्परा के शिव के दो पुत्रों में 'गणेश' सर्वपूज्य देव बने, जब कि दूसरे पुत्र कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बन कर उनके विजयाभियान में सहयोगी बने ।
जैन परम्परा के अनुसार, बाहुबलि ने भरत चक्रवर्ती की अधीनता नकार कर चक्रवर्ती के विजयाभियान में विघ्न उपस्थित किया था । किन्तु बाद में निवृत्तिमार्ग को स्वीकार कर उक्त विघ्न को
जैन धर्म एवं वैदिक धर्म को सास्कृतिक एकता 46