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________________ जैन पुराणकार आ. जिनसेन ने सर्वज्ञता के आधार पर तीर्थंकर ऋषभदेव को 'सर्वव्यापी' विशेषण से अलंकृत भी किया है (द्रष्टव्यः आदिपुराण- 24/71)। जैन आचार्य हेमचन्द्र ने जिनेन्द्र - मूर्ति को ब्रह्म-विष्णुशिवात्मक इस प्रकार सिद्ध किया है ज्ञानं विष्णुः सदा प्रोक्तम्, चारित्रं ब्रह्म उच्यते । सम्यक्त्वं तु शिवं प्रोक्तम्, अर्हन्मूर्तिस्त्रयात्मिका ॥ (महादेवस्तोत्र, 33 ) अर्थात् ज्ञान विष्णु है, चारित्र ब्रह्म है और सम्यक्त्व शिव है- इन तीनों से समन्वित अर्हन्त देव ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मक सिद्ध होते हैं । (ऋषभदेव और वैदिक ब्रह्मा:-) वैदिक परम्परा में 'ब्रह्मा' की जो-जो प्रमुख विशेषताएं मानी गई हैं, वे प्रायः सभी आदितीर्थंकर ऋषभदेव में समाहित हुई दृष्टिगोचर होती हैं । ब्रह्मा का नाम 'नाभेय' हैं, क्योंकि उनकी उत्पत्ति भगवान् विष्णु की नाभि में स्थित कमल से हुई है (द्र. भागवत पुराण - 5/3 अध्याय, 3/9/2, 21 ) । जैन परम्परा में भी ऋषभदेव को 'नाभेय' कहा जाता है क्योंकि व नाभिराजा के पुत्र थे (नाभेयो नाभिसंभूतेः, जिनसहस्रनाम स्तोत्र 1 / 10, नाभिनन्दनो जिन:- बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र - 5) | वैदिक परम्परा में परमेश्वर के विराट् शरीर से चारों वर्णों की उत्पति मानी गई। वैदिक पुरुषसूक्त (यजुर्वेद- 31 / 11 ) में विराट् ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, ऊरू प्रदेश से वैश्य तथा पांवों से शूद्र की उत्पत्ति होना निरूपित किया गया है। वैदिक परम्परा के अन्यान्य ग्रन्थों में भी ब्रह्मा या परमेश्वर द्वारा चारों वर्णों की उत्पत्ति मानी गई है (गीता - 4 / 13, मनुस्मृति- 1 /43 आदि) । प्रथम समद 41
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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