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________________ हमारी आवश्यकता के अनुसार मेह बरसा करे! अन्न की खेती से हमें यथासमय प्रभूत अन्न प्राप्त हो! हमारा योग-क्षेम हो! जैन परम्परा में भी राष्ट्रीय भावना के स्वर प्रचुरतया मुखरित हुए हैं। जैन आचार्य सोमदेव ने 'नीतिवाक्यामृत' (1/6) में स्पष्ट स्वीकार किया है-समस्तपक्षपातेषु स्वदेशपक्षपातो महान्, अर्थात् समस्त पक्षपातों (रागात्मक सम्बन्धों) में स्वदेश के प्रति पक्षपात/ बहुमान करना सर्वोत्तम/महनीय है। जैनाचार्य पूज्यपाद द्वारा रचित 'शान्ति-भक्ति' के निम्रलिखित दो पद्यों में राष्ट्र, देश व राजा/शासक की मंगल-कामना व्यक्त की गई है: सम्पूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्रसामान्यतपोधनानाम्। देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवान् जिनेन्द्रः॥ ___ (शांति भक्ति-6) - पूजा-उपासना करने वाले (धार्मिक), शासक वर्ग, श्रेष्ठ मुनि व सामान्य तपस्वी, देश, राष्ट्र, नगर और राजा -इन सभी को भगवान् जिनेश्वर सुख-शान्ति प्रदान करें : क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः, काले काले च सम्यग् वितरतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम्। दुर्भिक्षं चौरमारीः क्षणमपि जगतां मा स्म भूज्जीवलोके, जैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रभवतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि॥ (शांति भक्ति-15) समस्त प्रजा-वर्ग का कल्याण हो । राजा शक्तिशाली व धार्मिक हो । इन्द्र यथोचित समय पर अच्छी तरह वृष्टि करे। व्याधियां नष्ट हों। दुर्भिक्ष, चौरी, महामारी -ये सभी प्राणियों में एक क्षण के लिए भी नहीं हों। सर्व-सुख का दाता जिनेन्द्र-प्रवर्तित धर्म-चक्र (धर्मपरम्परा) निरन्तर प्रवर्तमान रहे- प्रभावशाली रहे। प्रय 15
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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