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(6) राष्ट्रीय भावना के स्वर :
जैन व वैदिक -दोनों सांस्कृतिक परम्पराएं राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं। राष्ट्र और उसके शासक की मंगल-कामना के साथ-साथ समस्त भारतीयों के कल्याण व सुख-समृद्धि एवं सर्वतोमुखी उन्नति की कामना को दोनों परम्पराओं में प्रभावक रीति से अभिव्यक्त किया गया है :
आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम्। आ राष्ट्र राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायताम्। दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम्। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु। फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्। योगक्षेमो नः कल्पताम्॥
(यजु 22/22) अर्थात् भगवन्! हमारे राष्ट्र मेंवेदाध्ययन-शील ब्राह्मण उत्पन्न हों! शूर, शस्त्रास्त्र-विद्या में दक्ष, शत्रु-संहारक और महारथी क्षत्रिय अधिकाधिक उत्पन्न हों! दुग्ध देनेवाली गौएं, भारवाही पुष्ट बैल और शीघ्रगामी घोड़े पाये जायें! सर्व-गुण-सम्पन्न सुशील सुन्दर स्त्रियां हों! यजमानों के पुत्र विजय-शील, युद्धार्थ सन्नद्ध, सभ्य, समर्थ और वीर हों!