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________________ (भागवत-8/13/11) । यदि दोनों परम्पराओं की नामावली में नाम-भेद पर ध्यान न दें तो दोनों धर्मों की अवधारणाओं में पर्याप्त साम्य है । (5) भारत वर्ष - नामकरणः जैन व वैदिक- दोनों संस्कृतियां इसी भारतभूमि में पल्लवित व विकसित हुई हैं। दोनों ही परम्पराएं यह मानती हैं कि ऋषभदेव के पुत्र 'भरत' के नाम पर 'भारतवर्ष' नाम पड़ा । वैदिक पुराण भागवत में ऋषभ को विष्णु का विशिष्ट अवतार माना गया है। वहां बताया गया है कि उनके पुत्र 'भरत' के नाम पर इस देश का नाम 'अजनाभ' के स्थान पर भारतवर्ष पड़ाः अजनाभं नाम एतवर्षं, भारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति ( भागवत - 5/7/3)। तेषां वै भरतो ज्येष्ठो नारायणपरायणः । विख्यातं वर्षमेतद् यन्नाम्ना भारतमद्भुतम् ॥ (भागवत - 11/2/17) इसी तथ्य का समर्थन अन्य पुराणों में भी प्राप्त होता है (द्रष्टव्यः मार्कण्डेय पुराण- 93 / 38-4, ब्रह्माण्ड पुराण- 14/61, विष्णु पुराण2/1/32, वायु पुराण- 33/52, अग्रि पुराण- 1/12, नारद पुराण- 48 /5, वाराह पुराण- 74 अध्याय, स्कन्ध पुराण- 37/57, लिंग पुराण- 47 / 24, शिव पुराण - 52 अध्याय) । जैन परम्परा भी उक्त तथ्य को समर्थन करती हैतरस भरहो भरहवासचूडामणी । तस्सेव नामेण इह भारहवासं ति पचति (वसुदेवहिण्डी, प्र. खं. पृ. 186 ) । भरतनामश्चक्रिणो देवाद्य भारतनाम प्रवृत्तं भरतवर्षाच्च तयोर्नाम (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति) । -चक्रवर्ती भरत भारतवर्ष के शीर्षस्थ मुकुट थे। उन्हीं के नाम से 'भारतवर्ष' यह नाम प्रचलित हुआ ।
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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