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________________ स्वप्न देखना काल्पनिक लोक में विचरण करना है। नींद खुलते ही वह 'अयथार्थ' में बदल जाता है। स्वप्न में खाए हुए भोजन से पेट नहीं भरता। वस्तुत: जागृति की अवस्था ही यथार्थ है, इसी में किया गया प्रयास सार्थक होता है। मिथ्या धारणाओं, अन्धविश्वासों, मोह-अज्ञानग्रस्त विचारधाराओं से युक्त व्यक्ति जागृत अवस्था में नहीं कहा जा सकता। आत्म-कल्याण के मार्ग में वैसा व्यक्ति कभी अग्रसर नहीं हो पाता, उन्मार्ग में ही भटकता रहता है। वैदिक व जैन -इन धर्मों ने इस सत्य से परिचित कराकर अज्ञानी व्यक्ति को जगाने का सतत प्रयास किया है। (1) सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी। (उत्तराध्ययन सूत्र-4/6) - इस ऊँघते हुए संसार में जागते रहना श्रेष्ठ है। (2) भूत्यै जागरणम्, अभूत्यै स्वपनम्। (यजुर्वेद-30/17) -जागना ऐश्वर्यप्रद है, सोना दरिद्रता का मूल है। < न धम : रोदिक धर्म की साज्ञिक एनला 452)>
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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