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________________ (10) असंशयं महाबाहो ! मनो दुर्निग्रहं चलम्। अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते ॥ __(गीता-6/35) - (भगवान श्रीकृष्ण ने कहा)- हे महाबाहु अर्जुन ! मन चंचल है, नि:संदेह उसे रोकना बड़ा कठिन है। किन्तु अभ्यास और वैराग्य से उसको वश में किया जा सकता है। (मानसिक पिनान) (11) परिणामादो बंधो। -परिणामों (विचारों) से ही बन्ध होता है। (प्रवचनसार-2/88) (12) रागी बंधइ कम्मं मुंचइ जीवो विरागसंपण्णो। (मूलाचार-247) -राग (परिणाम) से बन्ध होता है और वीतरागता से मुक्ति मिलती है। (13) मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध-मोक्षयोः। (मैत्रायणी उपनिषद्-4/11) - मन ही मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण है। (मनोजेताः) (14) जे एगं नामे से बहुं नामे। (आचारांग सूत्र-1/3/4) -जो एक (मन) को नत करता है-जीतता है, वह अनेक को जीतता है। जैन धर्म एक हैदिक धर्म की सानिक तता,448
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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