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न मिश्रः स्यात् पापकृभिः कथंचित्।
(महाभारत, 12/73/23) ____ - दुर्जनों/पापी लोगों के साथ किसी भी तरह मेलजोल नहीं बढ़ाना चाहिए।
(12) दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलंकृतोऽपि सन्।
(नीतिशतक, 47) - दुर्जन व्यक्ति भले ही विद्यावान् हो, उससे दूर रहना चाहिए। क्या मणि से शोभित सर्प भयावह नहीं होता?
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समाज में सुख-शान्ति बढ़े- इसके लिए अपेक्षित है कि सज्जनों की वृद्धि हो, दुर्जनों की कमी हो। इस दिशा में अग्रसर होने के लिए सत्संगति की उपयोगिता निर्विवाद है। सत्संगति में वृद्धि होने से सज्जनों की संख्या में स्वतः वृद्धि होती जाएगी। इस वैचारिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में सत्संगति करने व दुर्जन-संग न करने की समानतया प्रेरणा दी गई है।
सोनम पादिक धर्म की स.सिक पता 414