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________________ (6) सद्भिरेव सहासीत, सद्भिः कुर्वीत संगतिम्। . (सुभाषित रत्नभाण्डागार, 336/3) -सत्पुरुषों के साथ बैठना चाहिए। उन्हीं की संगति करनी चाहिए। (7) किंन स्यात् साधु-संगमात्। (उत्तरपुराण, 62/250) - सज्जनों की संगति से क्या-क्या (हितकारी कार्य) नहीं होते। (8) सतां सद्धि फलः संगमोऽस्ति। (महाभारत, 3/297/47) - सज्जनों की संगति कभी विफल नहीं जाती। (9) सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम्। (नीतिशतक, 23) - सज्जनों की संगति करने से ऐसा कौन-सा सुफल है जो व्यक्ति को नहीं प्राप्त होता? (दुर्जन-संसगी (10) खुड्डेहिं सह संसग्गिं, हासं कीडंच वजए। (उत्तराध्ययन सूत्र-1/9) -- क्षुद्र प्रकृति के (मूर्ख, दुर्जन) लोगों के साथ किसी प्रकार का संपर्क, हंसी-मजाक, क्रीड़ा आदि नहीं करना चाहिए।
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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