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जैसी दिखाई देती है, वैसे ही मनुष्य जिसकी संगति या मैत्री करेगा, वैसा ही हो जाएगा (अर्थात् सज्जनों की संगति से सज्जन और दुर्जनों के संसर्ग से दुर्जन)।
(2) बुद्धिश्च हीयते पुंसांनीचैः सह समागमात्। मध्यैर्मध्यमतां याति श्रेष्ठतां याति चोत्तमैः॥
(महाभारत, 3/1/30) __- पुरुषों की बुद्धि नीचों की संगति से हीन (क्षीण) हो जाती है, मध्यम कोटि के लोगों के साथ संगति करने से मध्यम स्तर की हो जाती है, और उत्तम कोटि के लोगों के साथ संगति करने से उत्तम हो जाती है।
(3) प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणः संसर्गतो जायते।
(नीतिशतक, 63) - प्रायः संसर्ग (संगति) के अनुरूप, अधम-मध्यम व उत्तम गुण हो जाते हैं।
(सत्संगति)
(4) कुज्जा साहूहि संथवं।
(दशवैकालिक सूत्र-5/53) - मुनि साधु-सभ्य जनों के साथ ही परिचय करें।
(5) वसेव सज्जणे जणे।
(बृहत्कल्पभाष्य, 5719)
- सज्जनों की संगति में रहना चाहिए।
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