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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति-व्यक्ति से समाज का गठन होता है और समाज के अनुरूप व्यक्ति को ढलना होता है। समाज में अच्छेबुरे सभी तरह के लोग रहते हैं। अच्छे या सज्जन लोग वे होते हैं जो अपना हित कम, दूसरे के हित का अधिक ध्यान रखते हैं। कभी-कभी तो वे अपना अहित भी करके दूसरे का हित करते हैं। इसके विपरीत, दुर्जन लोग होते हैं जिनसे किसी दूसरे के हित या कल्याण किये जाने की सम्भावना नहीं होती। कभी कभी तो वे अपना अहित करके भी दूसरे का अहित करते हैं। सामाजिक जीवन में सुख-शान्ति स्थापित रखने के लिए जैन व वैदिक- इन दोनों धर्मों में सज्जनों की संगति करने तथा दुर्जनों की संगति से बचने की प्रेरणा दी गई है। प्रेरक उपदेश में यह भी समझाया गया है कि संगति का प्रभाव पड़ता है। दुर्जन-संगति से पापमय जीवनचर्या बन जाती है और वह अपने व अन्य व्यक्तियों के लिए अहितकारी सिद्ध होती है। इसके विपरीत, सज्जन की संगति से व्यक्ति में सज्जनता का संचार होता है और मंगलमय मार्ग प्रशस्त होता है।
(संगति फल)
(1) जो जारिसी य मेत्ती करेइ सो होइ तारिसोचेव। वासिज्ज इच्छुरिया सारिया विकणयादिसंगण॥
(भगवती-आराधना, 343) - जैसे लोहे की छुरी सुवर्णादिक का झाल देने पर सोने की
(तीय खण्ड/471