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________________ HAI ჰეგებზბბბბბბზზზზბბბბბბვა 80000800 Pregn . 18 G ADAalom 985800005888888888888888892 भारतीय संस्कृति में जीवन का प्रारम्भिक भाग विशेषतः अध्ययन के लिए समर्पित माना गया है। वैसे तो समस्त जीवन ही विद्या-अर्जन करते रहने की प्रेरणा शास्त्रों में दी गई है। ज्ञानार्जन का प्रमुख साधन अध्ययन/स्वाध्याय है। चाहे सामाजिक जीवन हो या चाहे आध्यात्मिक जीवन, स्वाध्याय की उपयोगिता सर्वदा बनी रहती है। वैदिक व जैन-दोनों धर्मों में स्वाध्याय की प्रेरणा दी गई है। (1) सज्झायम्मि रओसआ। (दशवकालिक सूत्र-8/41) - सदा स्वाध्याय में रत रहना चाहिए। (2) स्वाध्यायान्मा प्रमदः। (तैत्तिरीयोपनिषद्-1/11/1) -शिष्य! स्वाध्याय में प्रमाद मत कर। जैन या वैदिक - दोनों धर्मों ने स्वाध्याय की उपयोगिता को स्वीकार कर प्रत्येक व्यक्ति को स्वाध्यायशील बनने की प्रेरणा दी है। न धर्म हा गादिक धर्म की पानी का 4402
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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