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________________ धर्म-झवण अध्यात्म के क्षेत्र में तात्त्विक ज्ञान की प्राप्ति हेतु श्रवण-मनननिदिध्यासन की क्रमिक परम्परा है। व्यक्ति गुरु या आचार्य के मुख से धर्मोपदेश व तात्त्विक ज्ञान सुनता है, फिर उस पर चिन्तन-मनन एवं निदिध्यासन (ध्यानएकाग्रता) करता है। इस प्रकार तत्त्व ज्ञान का प्रारम्भिक उपाय 'श्रवण' है। वैदिक व जैन- इन दोनों धर्मों में 'श्रवण' की महत्ता व उपयोगिता को रेखांकित किया गया है। (1) सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं। उभयं पि जाणइ सोच्चा, जे सेयं तं समायरे॥ (दशवैकालिक सूत्र-4/11) -- कल्याण और पाप कर्म का ज्ञान सुनने से ही होता है। सुनकर दोनों को जानो और फिर जो श्रेयस्कर लगे, उसका आचरण करो। (2) सवणे नाणे य विन्नाणे पच्चक्खाणे य संजमे। (भगवती सूत्र-2/5) - धर्म-श्रवण से तत्त्वज्ञान होता है, तत्त्वज्ञान से विज्ञान, विज्ञान से प्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान से संयम की प्राप्ति होती है। (3) बोधाम्भःस्रोतसञ्चैषा सिरा तुल्या सतां मता। अभावेऽस्याः श्रुतं व्यर्थमसिरावनिकूपवत्॥ __ (योगदृष्टिसमुच्चय, 53) N न धर्म एक कि धर्म की सार कुतिक त1/438
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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