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- त्रस (चलने-फिरने वाले) और स्थावर (एकेन्द्रिय) जीवों को जानकर उनकी (मन, वचन व शरीर से) जो कभी हिंसा नहीं करता, उसे हम ‘ब्राह्मण' कहते हैं।
(3) अलोलुयं मुहाजीविं अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं गिहत्थेसु तं वयं बूम माहणं।
(उत्तराध्ययन सूत्र-25/28) -- जो लोलुप नहीं है, उदरपूर्ति के लिए संग्रह नहीं करता, घरबार रहित है, जो अकिंचन/अपरिग्रही है, गृहस्थों में आसक्ति नहीं रखता, उसे हम 'ब्राह्मण' कहते हैं।
(4) जितेन्द्रियो धर्मपरः,स्वाध्यायनिरतः शुचिः। कामक्रोधौ वशे यस्य, तं देवा ब्राह्मणं विदुः॥
(महाभारत 3/206/35) - जो जितेन्द्रिय है,धर्मपरायण है, स्वाध्यायशील है, पवित्र है, और जिसने काम और क्रोध को वश में कर लिया है, उसे देवता 'ब्राह्मण' कहते हैं।
(5) अभयं सर्वभूतेभ्यः सर्वेषामभयं यतः। सर्वभूतात्मभूतो यस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः॥
(महाभारत-12/269/33) - जो सब प्राणियों को अभय देता है, किसी से भयभीत नहीं रहता और जो सब प्राणियों को आत्म-तुल्य समझता है, देवता उसे 'ब्राह्मण' कहते हैं।
जन धर्म एवं वेदिक धर्म की गतिक वाता/432