SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'आस्तिक' माना गया (द्र पाणिनि - सूत्र - अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः (4/4/ 60) - अस्ति परलोक इत्येवं मतिर्यस्य स आस्तिकः) । इस परिभाषा से जैन परम्परा 'आस्तिक' श्रेणी में समाहित मानी जाने लगी । 7. एक ही लक्ष्य के विविध मार्ग होने की मान्यता :धार्मिक उदारता की प्रवृत्ति को नया आयाम देते हुए महाकवि कालिदास ने कहा कि सभी दर्शन एक ही परम तत्त्व को प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग हैं। जैसे गंगा की सभी धाराएं समुद्र में जाकर मिलती हैं, वैसे ही सभी दार्शनिक धाराएं उसी परमात्म तत्त्व को लक्ष्य रखकर प्रवर्तमान हैं: बहुधाऽप्यागमैर्भिन्नाः पन्थानः सिद्धिहेतवः । त्वय्येव निपतन्त्यौघा जान्हवीया इवार्णवे ॥ (रघुवंश 1 /26) वस्तुतः महाकवि कालिदास की उपर्युक्त विचारधारा की पृष्ठभूमि वैदिक काल में ही प्रतिष्ठापित हो चुकी थी । वैदिक विचारधारा है तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् ब्रह्मता आपः स प्रजापतिः ॥ (यजुर्वेद 32 / 1 ) - अर्थात् अग्नि, आदित्य, वायु, प्रजापति आदि देवता वास्तव एक ही मूलतत्त्व की विभूतियां हैं । मनुस्मृति (12/123) में इसी भावना को आगे बढाते हुए कहा गया है एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम् । इन्द्र मेके परे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम् ॥ अर्थात् अग्नि, प्रजापति, इन्द्र नामों से वास्तव में एक ही मूलतत्त्व को कहा जाता है । जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता / 22
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy